अपने तीखे राजनीतिक चुटकुलों को लेकर चर्चित स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा के ताजा शो से उठे विवाद का पुलिस थाने तक पहुंच जाना मौजूदा दौर में अभिव्यक्ति के बढ़ते खतरे को ही नहीं, बल्कि गिरते हास्यबोध को भी दिखा रहा है। कुणाल कामरा ने चुटीले अंदाज में मौजूदा सत्ता पर न केवल तंज कसा, बल्कि पैरोडी के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को नहीं बख्शा। इससे नाराज होकर शिवसैनिकों ने उस स्टुडियो में भारी तोड़ फोड़ की हैं, जिसने कुणाल का शो आयोजित किया था। कुणाल कामरा जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उस पर एतराज हो सकता है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि उससे भी निचले स्तर की भाषा सड़क से संसद तक सुनी जा सकती है। यह वही देश है, जहां प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मशहूर कार्टूनिस्ट शंकर से कहा था, मुझे मत बख्शना! अधिक दिन नहीं हुए जब कार्टूनिस्ट और हास्य कलाकार लालू प्रसाद यादव का मजाक बनाने से गुरेज नहीं करते थे, लेकिन ऐसा कभी सुनने में नहीं आया कि राजद नेता ने इस पर कभी एतराज किया। दरअसल मामला यह भी है कि कुणाल कामरा की हास्य की भाषा प्रतिरोध की भाषा बन गई है, और यह मौजूदा दौर की राजनीतिक सत्ता को स्वीकार नहीं है।