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Home » पाश : मजदूरों, किसानों के हक और संघर्ष की आवाज  ‘हम लड़ेंगे साथी’

साहित्य-कला-संस्कृति

पाश : मजदूरों, किसानों के हक और संघर्ष की आवाज  ‘हम लड़ेंगे साथी’

Arun Pandey
Last updated: March 23, 2025 2:28 pm
Arun Pandey
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  • खालिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने 23 मार्च 1988 को पाश की कर दी थी हत्‍या

यह शहादत का संयोग ही है कि शहीद दिवस यानी 23 मार्च के दिन क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू‘पाश’ की हत्‍या खालिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा कर दी जाती है। क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी सन 1931 में दी गई और पाश की हत्‍या 1988 में की गई। पाश भगत सिंह को अपना आदर्श मानते थे। 

पाश का जन्म 9 सितंबर 1950 को पंजाब के जालंधर जिले के तलवंडी सलेम गांव में हुआ था। जब उनकी हत्‍या की गई तो उम्र मात्र 37 साल थी। पाश की कविताएं उनकी क्रांतिकारी सोच, सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता और व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह के लिए जानी जाती हैं। पाश ने 15 साल की उम्र में कविताएं लिखना शुरू कर दिया था।

क्यों की गई पाश की हत्या

पाश की हत्या 23 मार्च 1988 को खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों ने की थी। ये घटना उनके पैतृक गांव तलवंडी सलेम में हुई, जब वह अपने दोस्त हंसराज के साथ खेतों में ट्यूबवेल के पास नहा रहे थे। आतंकवादियों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिससे पाश और उनके दोस्त दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। उनकी हत्या के पीछे मुख्य कारण उनकी खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ मुखर विरोधी रुख और उनकी क्रांतिकारी कविताएं थीं, जो धार्मिक कट्टरता और हिंसा की आलोचना करती थीं।

पाश ने अपनी लेखनी से खालिस्तानी विचारधारा को चुनौती दी। 1985 में अमेरिका से प्रकाशित उनकी पत्रिका ‘एंटी-47’ में उन्होंने खालिस्तान आंदोलन का खुला विरोध किया था। उनकी कविताओं में सामाजिक असमानता, शोषण और धार्मिक संकीर्णता के खिलाफ तीखा प्रहार था, जिसने आतंकवादी समूहों को असहज कर दिया। उनकी प्रसिद्ध कविता “धर्म दीक्षा के लिए विनयपत्र” और “बेदखली के लिए विनयपत्र” में खालिस्तानी हिंसा और धर्म के नाम पर फैलाए गए भ्रम की निंदा की गई थी। यह साहसिक रुख उनकी हत्या का कारण बना। कुछ लोगों का मानना है कि उनकी हत्या केवल उनकी कविताओं के कारण नहीं, बल्कि उनके विचारों के व्यापक प्रभाव के डर से भी की गई, जो युवाओं को प्रेरित कर रहा था।

अमेरिकी यात्रा और ‘एंटी-47’ पत्रिका का संपादन

पाश 1985 में अमेरिका गए थे। इस यात्रा का मकसद उनकी साहित्यिक और राजनीतिक गतिविधियों को अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान करना था। उस समय पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद चरम पर था और पाश को अपनी बात व्यापक स्तर पर रखने के लिए सुरक्षित मंच की जरूरत थी।अमेरिका में उन्होंने ‘एंटी-47’ नामक पत्रिका का संपादन शुरू किया, जिसके जरिए उन्होंने खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए। यह पत्रिका पंजाब के हालात और वहां फैली हिंसा के खिलाफ एक वैचारिक हथियार के रूप में उभरी। अमेरिका में रहकर उन्होंने पंजाबी साहित्य और भारतीय क्रांतिकारी आंदोलनों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से जोड़ने का प्रयास किया। 1988 में जब वह छुट्टियां बिताने अपने गांव लौटे थे, तो उनकी हत्या कर दी गई।

1969 में झूठे आरोपों में जेल

पाश की कविताओं में सरकार, पूंजीवाद और सामाजिक शोषण की कड़ी आलोचना थी। 1969 में उन्हें झूठे आरोपों में जेल में डाला गया था, जहां उन्होंने लगभग दो साल बिताए। सरकार उनकी लेखनी से असहज थी क्योंकि यह जनता को जागरूक करने और विद्रोह के लिए प्रेरित करने का काम करती थी। उनकी कविता “हम लड़ेंगे साथी” और “सबसे खतरनाक” रचनाएं व्यवस्था के खिलाफ खुला ऐलान थीं। उनकी कविताओं को स्कूल पाठ्यक्रम से हटाने की मांग भी उठी थी, क्योंकि वे युवाओं में क्रांतिकारी भावनाएं जगा रही थीं।

पाश की कुछ चर्चित कविताएं

पाश की कविताएं पंजाबी साहित्य में क्रांतिकारी काव्य की एक मिसाल हैं। उनकी रचनाओं में ग्रामीण जीवन की सादगी, मेहनतकश लोगों की पीड़ा और व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह की भावना झलकती है।

  • सबसे खतरनाक :  यह उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता है, जिसमें वह कहते हैं कि सपनों का मर जाना सबसे खतरनाक होता है। यह कविता नई पीढ़ी को प्रेरित करने वाली मानी जाती है। 

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना—बुरा तो है

सहमी-सी चुप में जकड़े जाना—बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना—बुरा तो है

किसी जुगनू की लौ में पढ़ना—बुरा तो है
मुट्ठियाँ भींचकर बस वक़्त निकाल लेना—बुरा तो है

सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है

मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना

सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

  • हम लड़ेंगे साथी : यह कविता संघर्ष और एकजुटता का प्रतीक है, जो मजदूरों और किसानों के हक की बात करती है। 

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े

हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, सवाल नाचता है
सवाल के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े गाँठों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का पेशाब पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता

जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर

हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब बन्दूक न हुई, तब तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी

और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वाले की
याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे

  • भारत : इस कविता वह भारत को खेतों और मेहनतकशों से जोड़ते हैं। 

मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द
जहां कहीं भी प्रयोग किया जाए
बाक़ी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते है

इस शब्द के अर्थ
खेतों के उन बेटों में है
जो आज भी वृक्षों की परछाइओं से
वक़्त मापते है
उनके पास, सिवाय पेट के, कोई समस्या नहीं
और वह भूख लगने पर
अपने अंग भी चबा सकते है
उनके लिए ज़िन्दगी एक परम्परा है
और मौत के अर्थ है मुक्ति
जब भी कोई समूचे भारत की
‘राष्ट्रीय एकता’ की बात करता है
तो मेरा दिल चाहता है —
उसकी टोपी हवा में उछाल दूँ
उसे बताऊं
के भारत के अर्थ
किसी दुष्यन्त से सम्बन्धित नहीं
वरन खेत में दायर है
जहां अन्न उगता है
जहां सेंध लगती है

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