भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान 22 मार्च 2020 ऐसी तारीख के रूप में इतिहास में दर्ज हो गई, जब ताली-थाली बजवाकर हमारी वैज्ञानिक सोच को कुंद कर दिया गया। इसी दिन पहली बार “जनता कर्फ्यू” के रूप में एक दिन का लॉकडाउन लागू किया गया। लोगों से सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक घरों में रहने की अपील की गई थी। शाम पांच बजे अचानक से देश भर में लोग ताली-थाली बजाने लगे। दिल्ली, लखनऊ, कोलकत्ता, बंगलुरू, मुंबई, भोपाल, रायपुर समेत हर छोटे बड़े शहर में कोरोना भगाने के लिए लोग सामूहिक रूप से ताली-थाली बजाते हुए देखे गए। यहां तक कि पॉश कालोनियों और गगनचुंबी सोसाइटियों में रहने वाले लोग, जिन्हें शिक्षित माना जाता है वो भी बालकनियों में खड़े होकर ताली-थाली और शंख बजाकर बजा रहे थे। कुछ शहरों में जुलूस तक निकाले गए, जिसमें “गो-कोरोना-गो” के नारे लगाए गए। ऐसा दिखाया गया कि कोराना इसी से डर कर भाग जाएगा। ताली-थाली बजाने का यह राष्ट्रव्यापी अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर चलाया गया था।

लोगों ने समझा ताली-थाली से डर जाएगा कोरोना
बगैर तैयारी और सोच के साथ लागू किया गए जनता कर्फ्यू के विस्तार रूप में देश ने संपूर्ण लॉकडाउन झेला। सोशल मीडिया में ताली थाली और कोरोना वायरस को लेकर बड़े ही आधारहीन तरीके से बातें की गईं, जिसका नतीजा यह हुआ कि कुछ लोगों में यह धारणा बन गई कि ताली-थाली के शोर से वायरस “डरकर भाग जाएगा”, जो पूरी तरह से अवैज्ञानिक था।

सामूहिक रूप से ताली–थाली बजाना
जनता कर्फ्यू को देशभर में व्यापक समर्थन मिला। सड़कें वीरान रहीं, बाजार बंद रहे और अधिकांश लोग अपने घरों में रहे। शाम 5 बजे देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों ने सामूहिक रूप से ताली, थाली, घंटी, और शंख बजाया। जबकि कोरोना से बचाव की पहली शर्त ही सोशल डिस्टेंसिंग थी। यह एक अभूतपूर्व अवैज्ञानिक घटना थी, जिसमें बच्चे, युवा, और बुजुर्ग सभी शामिल हुए। सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए और कई लोगों ने इसे एकजुटता और उत्साह का प्रतीक माना। हालांकि, कुछ लोगों ने इसे मजाक का विषय भी बनाया और यह सवाल उठाया कि क्या शोर से वायरस पर कोई असर पड़ सकता है।
वैज्ञानिक आधार की कमी
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ताली या थाली बजाने का SARS-CoV-2 वायरस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। कोविड-19 एक श्वसन तंत्र से फैलने वाला वायरस है, जो छींटों और संपर्क के माध्यम से संचरित होता है। शोर या ध्वनि तरंगों का वायरस के संचरण या उसके निष्क्रिय होने पर कोई प्रभाव नहीं होता। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों ने स्पष्ट किया कि इस महामारी से लड़ने के लिए मास्क पहनना, हाथ धोना, सोशल डिस्टेंसिंग और बाद में वैक्सीनेशन ही प्रभावी उपाय हैं। ताली-थाली बजाना केवल एक भावनात्मक और प्रतीकात्मक कदम था, न कि कोई वैज्ञानिक समाधान।
विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएं
- डॉ. रणदीप गुलेरिया (तत्कालीन AIIMS निदेशक) जैसे विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि ताली-थाली बजाना स्वास्थ्यकर्मियों के मनोबल को बढ़ाने के लिए था, न कि वायरस को भगाने के लिए। उन्होंने इसे एक सकारात्मक कदम माना, लेकिन यह भी कहा कि इसे गलत तरीके से प्रचारित नहीं करना चाहिए।
- मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर एस.एन. कर्ण (कटिहार) ने इसे प्रतीकात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से सकारात्मक बताया। उनका कहना था कि यह फ्रंटलाइन वर्कर्स का उत्साह बढ़ाने और जनता में एकजुटता का भाव पैदा करने के लिए था।
समाजशास्त्रियों की राय
कुछ आलोचकों जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संपूरवानंद ने इसे गरीबों और अल्पसंख्यकों के लिए असंवेदनशील बताया। उनका कहना था कि जिनके पास बालकनी या थाली जैसी सुविधाएं नहीं थीं, वे इस पहल से अलग-थलग महसूस कर सकते थे।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे सरकार की “पीआर रणनीति” करार दिया, जिसका मकसद लोगों का ध्यान वास्तविक तैयारियों की कमी से हटाना था। बीबीसी की एक रिपोर्ट (21 मार्च 2021) में दावा किया गया कि लॉकडाउन की घोषणा से पहले कई सरकारी विभागों को कोई जानकारी नहीं थी, जिससे यह संदेह पैदा हुआ कि जनता कर्फ्यू एक आकस्मिक कदम था। इसके विपरीत, कुछ ने इसे सरकार की दूरदर्शिता माना, क्योंकि इसने लॉकडाउन के लिए जनता को मानसिक रूप से तैयार किया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने क्या कहा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ताली-थाली बजाने पर कोई विशेष टिप्पणी नहीं की, लेकिन यह जरूर कहा कि भारत को पोलियो उन्मूलन की तरह कोविड-19 के खिलाफ व्यवस्थित रणनीति बनानी चाहिए, जिसमें प्रतीकात्मक कदमों से ज्यादा वैज्ञानिक उपायों पर जोर हो।
30 जनवरी 2020 को पहला केस
देश में कोरोना वायरस (कोविड-19) का पहला केस 30 जनवरी 2020 को दर्ज किया गया था। यह मामला केरल के त्रिशूर जिले में सामने आया था। संक्रमित एक मेडिकल छात्र था, जो चीन के वुहान शहर से लौटा था, जहां यह वायरस सबसे पहले फैला था। उस समय भारत में इसे गंभीर खतरे के रूप में नहीं देखा गया था, लेकिन यह महामारी की शुरुआत का संकेत था।
19 मार्च 2020 को पीएम मोदी के संबोधन का अंश

प्रधानमंत्री मोदी ने 19 मार्च 2020 को रात में टीवी पर आकर जनता कर्फ्यू का ऐलान किया। इस घोषणा के बाद देश में अफरा-तफरी मच गई। भले ही यह एक दिन के लिए रहा हो, लेकिन इस बात का अंदेश जताया जाने लगा था कि संपूर्ण लॉकडाउन लगेगा। 19 मार्च को प्रधानमंत्री ने देश के नाम अपने संबोधन में क्या कहा था उसका कुछ अंश देखिए…
“मैं चाहता हूं कि इस रविवार (22 मार्च 2025) को जनता कर्फ्यू के दिन, हम अपने घरों से बाहर न निकलें। सड़कों पर, बाजारों में, मोहल्लों में, कहीं भी न जाएं। जो लोग आवश्यक सेवाओं में हैं, जैसे कि स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग, पुलिसकर्मी, सरकारी कर्मचारी, मीडिया, उन्हें छोड़कर बाकी सभी लोग घर पर रहें। मैं चाहता हूं कि 22 मार्च को शाम 5 बजे, हम अपने घर के दरवाजे पर, बालकनी में, खिड़की पर खड़े होकर, 5 मिनट तक इन लोगों का आभार व्यक्त करें। ताली बजाकर, थाली बजाकर, घंटी बजाकर, हम इनका धन्यवाद करें। पूरे देश के स्थानीय प्रशासन से भी मेरा आग्रह है कि 22 मार्च को शाम 5 बजे सायरन की व्यवस्था करें, ताकि ये संदेश हर किसी तक पहुंचे…”
