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Home » संभल में फिर क्यों गर्म है माहौल : सालार मसूद गाजी के नाम पर लगने वाले नेजा मेले का क्या है विवाद

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संभल में फिर क्यों गर्म है माहौल : सालार मसूद गाजी के नाम पर लगने वाले नेजा मेले का क्या है विवाद

Arun Pandey
Last updated: March 19, 2025 6:46 pm
Arun Pandey
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संभल में जामा मस्जिद सर्वे को लेकर हुआ तनाव अभी तक शांत भी नहीं हुआ था कि अब एक और नया विवाद सामने आ गया है। जिले में सालार मसूद गाजी के नाम पर लगने वाले पारंपरिक नेजा मेले पर रोक लगा दी गई है। जिला प्रशासन ने इस मेले की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया। होली और रमजान को लेकर भी संभल राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में था, जब सीओ अनुज चौधरी ने कहा था कि “जुमा साल में 52 बार आता है, होली एक बार। जिसको भी रंगों से दिक्कत हो, वह घर में रहे।”

17 मार्च को ‘नेजा मेला’ कमेटी के सदस्य पुलिस अधिकारियों से मिले, लेकिन अपर पुलिस अधीक्षक (एएसपी) श्रीश चंद्र ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि इस मेले को लगाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा, “किसी लुटेरे की याद में कोई आयोजन नहीं हो सकता।”

मेला कमेटी ने 18 मार्च को झंडा गाड़ने और 25-27 मार्च तक मेला लगाने की योजना बनाई थी, लेकिन प्रशासन ने अनुमति नहीं दी। कमेटी के सदस्य वरिष्ठ अधिकारियों से मिलकर इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग कर रहे हैं।

कौन हैं सालार मसूद गाजी?
सैयद सालार मसूद गाजी का नाम भारतीय इतिहास में युद्ध और आक्रमण के संदर्भ में दर्ज है। जानकारों के अनुसार उनका जन्म 1014 ईस्वी में अजमेर में हुआ था। वह महमूद गजनवी के भांजे और उनके सेनापति भी थे। सालार मसूद गाजी ने 1030-31 ईस्वी के आसपास अवध क्षेत्र की ओर कूच किया और सतरिख (बाराबंकी) होते हुए बहराइच-श्रावस्ती के इलाके में पहुंचे। उस समय वहां के राजा सुहेलदेव का शासन था।

1034 ईस्वी में बहराइच के चित्तौरा झील के किनारे एक युद्ध हुआ, जिसमें राजा सुहेलदेव और उनके 21 सहयोगी राजाओं ने सालार मसूद गाजी को पराजित कर मार डाला। इसके बाद उन्हें बहराइच में दफनाया गया।

सालार मसूद गाजी की मृत्यु के लगभग 200 साल बाद 1250 ईस्वी में दिल्ली के तत्कालीन शासक नसीरुद्दीन महमूद ने उनकी कब्र पर एक मकबरा बनवाया और उन्हें संत के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई। बाद में फिरोज शाह तुगलक ने इस मकबरे के पास कई अन्य निर्माण करवाए, जिसमें गुंबद और अब्दी गेट शामिल थे। धीरे-धीरे यह स्थान सालार मसूद गाजी की दरगाह के रूप में प्रसिद्ध हो गया।

संभल में होली के बाद दशकों से लग रहा है मेला
संभल के चमन सराय मोहल्ले में हर साल होली के बाद सैयद सालार मसूद गाजी की याद में नेजा मेले का आयोजन दशकों से होता आया है। दशकों से होते आ रहे इस आयोजन पर कुछ लोगों की आपत्ति के बाद प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विरोध करने वाले पक्ष का कहना है कि सैयद सालार मसूद देश के लिए नुकसानदेह थे, इसलिए उनके नाम पर मेला आयोजित कर उनका महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए। इसी मुद्दे नेजा मेला आयोजन समिति के सदस्यों ने अपर पुलिस अधीक्षक (एएसपी) श्रीश चंद्र से मुलाकात की थी।

बैठक के दौरान एएसपी ने समिति से मेले के आयोजन के उद्देश्य और ऐतिहासिक संदर्भ को लेकर सवाल किए। इसके बाद उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “सोमनाथ मंदिर को लूटने वालों के नाम पर मेले की अनुमति नहीं दी जा सकती। इतिहास के अनुसार, सैयद सालार मसूद महमूद गजनवी के सेनापति थे, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर को लूटा और देश में कत्लेआम किया। ऐसे व्यक्ति की याद में आयोजन करना उचित नहीं है।”

बीबीसी हिंदी को दी प्रतिक्रिया में पुलिस अधीक्षक (एसपी) कृष्ण कुमार विश्नोई ने कहा, “एएसपी अपनी बात सही ढंग से रख सकते थे, लेकिन हमारी प्राथमिकता कानून-व्यवस्था बनाए रखना है। सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना प्रशासन की ज़िम्मेदारी है और हम नहीं चाहते कि इस मुद्दे पर कोई विवाद खड़ा हो।”

समाजवादी पार्टी ने फैसले की आलोचना की
समाजवादी पार्टी ने इस फैसले की आलोचना की है। अखिलेश यादव ने कहा, “हर धर्म और जाति के लोग नेजा मेले में मिलते-जुलते हैं। अगर कुंभ की तारीफ की जा रही है, तो दूसरे मेलों की क्यों नहीं?”

एक दशक से हो रही है सियासत
उत्तर प्रदेश में राजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद गाजी को लेकर राजनीति बीते कुछ सालों से होती आ रही है। बीजेपी और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव को नायक के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने 2021 में सुहेलदेव के स्मारक की आधारशिला रखी थी। अमित शाह 2016 से ही अपने भाषणों में इसका उल्लेख करते आए हैं।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी चुनाव प्रचार में सुहेलदेव को सम्मान न मिलने की बात कहकर राजभर वोटों को अपनी तरफ करने की कोशिश कर चुके हैं। 2014 के बाद से सालार मसूद यानी गाजी मियां को आक्रांता कहने का चलन जोर पकड़ चुका है। अब संभल में नेजा मेले के बहाने यह मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है।

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