रायपुर सेंट्रल जेल से रांची ले जाए जा रहे कुख्यात गैंगस्टर अमन साहू की झारखंड में कथित मुठभेड़ में हुई मौत ने देश की अपराध न्याय प्रणाली पर फिर से गंभीर सवाल उठाया है। पता चला है कि अमन साहू के कई हाई प्रोफाइल मामलों से जुड़े लारेंस विश्नोई गैंग से भी ताल्लुकात थे और उस पर सौ से अधिक मामले चल रहे थे। जाहिर है, अमन साहू की मौत के बाद ऐसे सारे मामलों पर परदा डल जाएगा, जिनमें करोड़ों रुपये के कोयला घोटाला से जुड़े मामले भी शामिल हैं। पुलिस के मुताबिक रास्ते में उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी और मौके का फायदा उठाकर अमन ने भागने की कोशिश की तो उस पर गोली चलानी पड़ी। यह कहानी कई बार दोहराई जा चुकी है। करीब पांच साल पहले उत्तर प्रदेश की पुलिस के साथ मुठभेड़ में कुख्यात अपराधी विकास दुबे भी ऐसे ही मारा गया था। विकास दुबे हो या अमन साहू, उनके प्रति सहानुभूति नहीं हो सकती, लेकिन किसी भी सभ्य और लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी अपराधी को अदालत से सजा मिलनी चाहिए। अमन साहू पर जेल के भीतर से कई हत्याकांड और हमलों को अंजाम देने के आरोप भी थे। बिना पुलिस और राजनीतिक संरक्षण के अमन साहू और लारेंस विश्नोई जैसे आरोपी जेल के भीतर से अपराध का नेटवर्क नहीं चला सकते। इसीलिए ऐसी मुठभेड़ें न्यायेतर हत्या का शक पैदा करती हैं।
मुठभेड़ और न्यायेतर हत्या

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