चैम्पियंस ट्रॉफी क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल मैच के दौरान तेज़ गेंदबाज मोहम्मद शमी का मैदान में एनर्जी ड्रिंक पीना कुछ मौलानाओं को नागवार गुजरा है, उन्हें लगता है कि शमी ने रमजान के पाक महीने में रोजा न रख कर गुनाह किया है। दरअसल मुद्दा इससे भी गंभीर यह है कि कुछ मौलानाओं की राय के आधार पर, जिस पर कई अन्य मौलाना इत्तफाक नहीं रखते, एक पूरे समुदाय को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। यह इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि हम हिन्दुत्व के उभार के ऐसे दौर में रह रहे हैं, जहां सत्ता के शीर्ष पदों से लेकर मीडिया तक में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अल्पसंख्यकों को उनके धर्म या आस्था के आधार पर निशाना बनाया जाता है। यह दुखद है कि चैम्पियंस ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन कर रहे शमी के साथ सोशल मीडिया में ट्रोल जैसा व्यवहार किया जा रहा है, जबकि धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को लेकर हर धर्म में कोई एकराय नहीं है। हर धर्म की मान्यताओं की अलग अलग व्याख्याएं और उनमें मतभेद भी हैं। मसलन शमी के लिए बरेली के मौलानाओं के फरमान को ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ के जनरल सेक्रेट्री ने सस्ती लोकप्रियता करार दिया है। ऐसे में मीडिया की इसमें दिलचस्पी दरअसल उसी कथानक का हिस्सा लगती है, जिसे सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है।
कट्टरता के निशाने पर

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