प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में नीतीश कुमार को “लाड़ला मुख्यमंत्री” जरूर बताया है, लेकिन भाजपा नेताओं की ओर से आ रहे बयानों से संकेत मिल रहे हैं कि कुछ महीने बाद होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए में उनके नाम पर एक राय नहीं है। बिहार को लेकर कयास कुछ महीने पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली भारी सफलता के बाद से लगाए जाने लगे थे। महाराष्ट्र का चुनाव महायुति ने बेशक एकनाथ शिंदे के चेहरे पर लड़ा था, लेकिन वहां भाजपा देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनवाने में सफल रही है। दरअसल बिहार के सियासी समीकरण भी पहले से काफी बदल चुके हैं, जहां अभी तक भाजपा जद (यू) को कम सीटें मिलने के बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करती आई है। बेशक इसके पीछे नीतीश का बार-बार पलट जाना भी एक कारण रहा है। एक तरह से यह भाजपा और जद (यू) के बीच सुविधा की शादी है, ताकि नीतीश को राजद के साथ गठजोड़ करने से रोका जा सके। 2005 से अब तक चार बार मुख्यमंत्री बन चुके नीतीश अपनी साख गंवा चुके हैं और एनडीए में चिराग पासवान और जीतन मांझी जैसे नेताओं की मौजूदगी ने जातीय समीकरण साधने में मदद की है। हाल ही में 74 वां जन्मदिन मनाने वाले नीतीश कुमार क्या एक बार और पलटी मारेंगे और क्या बिहार की जनता उन्हें “सुशासन बाबू” के रूप में अब भी स्वीकार करती है, यह देखना दिलचस्प होगा।