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लेंस संपादकीय

काम और नींद के बीच संतुलन

The Lens Desk
The Lens Desk
Published: March 1, 2025 5:32 PM
Last updated: March 6, 2025 3:32 PM
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कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में राज्य के परिवहन विभाग के एक कांस्टेबल का निलंबन रद्द करते हुए काम और नींद के बीच संतुलन को मानवाधिकार के दायरे में माना है। दरअसल लगातार दो महीने से दोहरी ड्यूटी कर रहे कांस्टेबल चंद्रशेखर को सोते हुए पाए जाने पर सेवा से निलंबित कर दिया गया था। श्रम कानूनों और पचहत्तर साल पुराने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणापत्र के अनुच्छेद 24 का हवाला देते हुए अदालत ने रेखांकित किया है कि काम और नींद के बीच संतुलन होना चाहिए। चंद्रशेखर ने अदालत का दरवाजा न खटखटाया होता, तो शायद इस मुद्दे पर कोई बात ही नहीं करता, क्योंकि हमारे यहां सरकारी क्षेत्र हो या निजी क्षेत्र, काम के घंटे को लेकर मनमाना रवैया आम है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब नारायण मूर्ति और एस एन सुब्रमण्यन जैसे कॉर्पोरेट जगत के दिग्गज 70 घंटे और 90 घंटे काम की पैरवी करते नजर आए थे। जबकि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अधिकतम आठ घंटे की शिफ्ट के साथ हफ्ते में 48 घंटे काम तय कर रखा है। बात सिर्फ काम के सुनिश्चित घंटे भर की नहीं है, कार्यस्थल पर काम की परिस्थितियां भी अमूममन कर्मचारी हितैषी नहीं होती। इस फैसले के मद्देनजर असल सवाल यह है कि क्या इस फैसले से व्यवस्था के नियंताओं की नींद टूटेगी!

TAGGED:court judgementEditorialHigh Court of KarnatakaLabour law
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