28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। विख्यात भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने 1928 में इसी दिन फोटॉन के बिखराव की एक घटना की खोज की थी, जिसे उनके नाम पर ही रमन इफेक्ट यानी रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। उनकी ही स्मृति में इस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस घोषित किया गया। पहला विज्ञान दिवस 28 फरवरी 1987 को मनाया गया था। यह दौर तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी का था जो देश में कंप्यूटर युग के सूत्रधार माने जाते हैं। विज्ञान दिवस का उद्देश्य देश में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार भी है। आज देश अवैज्ञानिकता के बड़े संकट से गुजर रहा है। पाखंड, अंधविश्वास, भाग्यवाद जैसी बातें आज देश का चरित्र होते जा रहे हैं। यह ज्ञान और विज्ञान पर अभूतपूर्व हमले का दौर है। दुर्भाग्य ही है कि वर्तमान सत्ता देश के ऐसे चरित्र के चित्रण को प्रोत्साहित ही नहीं कर रही है बल्कि यह महसूस होता है कि वह विज्ञान के मुकाबले कूपमण्डूकता के प्रसार के अभियान में सहभागी ही बनी हुई है।
वैज्ञानिक चेतना का अभाव देश को विनाश के ही रास्ते पर ले जाएगा। जिस समय हम यह लिख रहे हैं, उसी समय बद्रीनाथ से ग्लेशियर के गिरने की दुखद खबर आ रही है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में प्रकृति से छेड़छाड़ का खतरनाक दुष्परिणाम है। एक सुखद खबर छत्तीसगढ़ से है जहां सरकारी स्कूल के बच्चों ने रॉकेट बनाया है और नैनो सेटेलाइट बनाना सीख रहे हैं। यह एक कलेक्टर की दिलचस्पी से हो सका। यहीं सत्ता की वैज्ञानिक चेतना के हक में भूमिका दर्ज होती है और यह उम्मीद भी कि युवा पीढ़ी इस चेतना की सबसे बड़ी वाहक बनेगी। यह विज्ञान बनाम अवैज्ञानिकता की लड़ाई है। इस लड़ाई में विज्ञान को जीतना ही होगा।
विज्ञान बनाम अवैज्ञानिकता
