बेंगलुरु। यदि तय घंटे से अधिक डयूटी करने पर काम के दौरान नींद आए जाए तो यह अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। जी हां! ऐसा ही फैसला कर्नाटक हाईकोर्ट ने दिया है। डूयटी के दौरान सोते हुए पाए जाने पर सस्पेंड हुए कॉस्टेबल को अदालत ने राहत दी है।
कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कर्नाटक राज्य परिवहन निगम के निलंबन आदेश को अनुचित ठहराया। जिसमें, 33 साल के चंद्रशेखर को जुलाई 2024 में सस्पेंड कर दिया गया था। वह अप्रैल 2024 में ड्यूटी के दौरान सोते हुए पाए गए थे, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
निगम ने अदालत को दलील दी कि कॉस्टेबल का सोते हुए वीडियो वायरल होने से उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। हाईकोर्ट ने दलील खारिज करते हुए कहा कि असल समस्या यह थी कि कांस्टेबल से अव्यवहारिक रूप से अधिक काम लिया जा रहा था।
चंद्रशेखर ने अदालत को बताया कि लंबे समय तक काम के घंटे के कारण वह ठीक से नींद पूरी नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने बिना छुट्टी के 60 दिनों तक रोज 16 घंटे की शिफ्ट में काम किया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि ऐसे कठिन परिस्थितियों में झपकी लेने के लिए चंद्रशेखर को दंडित करना अन्यायपूर्ण है।
कोर्ट ने इस बार पर जोर दिया कि एक दिन में काम के आठ घंटे तय हैं। लेकिन, कांस्टेबल चंद्रशेखर को दो शिफ्टों में 16 घंटे काम करने के लिए कहा गया था। यह कामकाजी नियमों और मानवाधिकारों के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह न केवल कांस्टेबल के लिए बल्कि सभी कर्मचारियों के लिए सही कामकाजी माहौल सुनिश्चित करना जरूरी है।
न्यायमूर्ति ने क्या कहा
न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा, “पर्याप्त विश्राम का अधिकार भारतीय संविधान और अंतरराष्ट्रीय श्रम कानूनों के तहत संरक्षित है। यदि किसी कर्मचारी को कानूनी रूप से स्वीकृत घंटों से अधिक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो थकान स्वाभाविक है।”