मुंबई। “2022 में मैंने उन लोगों की गाड़ी पलट दी जिन्होंने मुझे हल्के में लिया था और हमने एक नई सरकार बनाई जो लोगों के दिलों में बस गई.” महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हाल ही में दिए गए बयान के बाद से सियासी गलियारे में महायुति सरकार की एकजुटता को लेकर संदेह पैदा हो गया है। जाहिर है शिंदे का यह बयान महा विकास अघाड़ी की सरकार गिराने की घटना को लेकर था, लेकिन अब जब वह महायुति सरकार का खुद हिस्सा हैं तो इस बयान के क्या मायने हैं?
सियासी गलियारों में ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पिछली सरकार में मुख्यमंत्री रहते हुए एकनाथ शिंदे द्वारा लिए गए कई फैसलों की विभिन्न तरीकों से जांच करवा रहे हैं। सीएम फडणवीस के आदेश के बाद सोयाबीन और कपास की एमएसपी को लेकर अनियमितताओं की जांच के लिए एक नई समिति गठित कर दी है।
महाराष्ट्र राज्य के बाजार मंत्री जयकुमार रावल की अगुआई में बनी इस छह सदस्यीय समिति का गठन उन शिकायतों के बाद किया गया है, जिनमें आरोप थे कि पिछली सरकार के कार्यकाल में कुछ नोडल एजेंसियां किसानों से एमएसपी के नाम पर अवैध वसूली कर रही थीं।
शिवसेना शिंदे गुट नासिक और रायगढ़ के पालक मंत्री पदों को लेकर भी नाराज है। वहीं शिंदे गुट ने डिप्टी सीएम मेडिकल रिलीफ एड सेल और प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेशन सेल भी शुरू कर दिया है, जो मुख्यमंत्री कार्यालय के वॉर रूम से अलग स्वतंत्र रूप से काम करेगा। इसके अलावा जालाना में 900 करोड़ के एक हाउसिंग प्रोजेक्ट की जांच के आदेश भी सीएम फडणवीस ने दिए हैं। इसी तरह शिंदे सरकार में बीएमसी में पारित 1400 करोड़ के टेंडर को भी रद्द कर दिया गया है।
शिंदे की नाराजगी का बीजेपी पर कितना असर
जाहिर तौर पर देखें तो शिंदे बयानों के जरिए अपनी अहमियत बताने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अहम सवाल यह है कि बगैर शिंदे के महायुति सरकार पर कोई फर्क पड़ेगा क्या? अगर शिंदे अपने विधायकों का समर्थन महायुति से वापस ले लेते हैं तो भी सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वहीं शिंदे और बीजेपी दोनों ने सार्वजनिक रूप से किसी भी तरह के मनमुटाव से इनकार किया है। ऐसे में बीजेपी पर किसी भी सियासी नाराजगी का तब तक कोई असर नहीं होगा जब तक महायुति के बाकी घटक दल कोई फैसला नहीं लेते हैं।
महायुति में कौन कितना ताकतवर
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में से 230 पर महायुति को जीत मिली। मौजूदा समय में बीजेपी के पास 132 सीटें हैं, अजीत गुट के पास 41 सीटें, शिंदे गुट के पास 57 हैं। शिंदे की 57 सीटें अगर हटा दी जाएं तो महायुति के पास 173 सीटें हैं जो बहुमत के आंकड़े से काफी ज्यादा हैं। 33 कैबिनेट मंत्रियों में से 16 भाजपा से, 9 शिवसेना (एकनाथ शिंदे) से और 8 एनसीपी (अजीत पावर) से हैं।