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साहित्य-कला-संस्कृति

हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ हैं ‘निराला’

The Lens Desk
The Lens Desk
Published: February 21, 2025 1:43 PM
Last updated: March 12, 2025 2:32 PM
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‘मेरे ही अविकसित राग से विकसित होगा बंधु दिगंत अभी न होगा मेरा अंत’ : सूर्यकांत त्रिपाठी

साहित्य डेस्क| 21 फरवरी साहित्य से जुड़े हर इंसान के लिए बहुत ही खास दिन है। इस दिन हिंदी के छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी का जन्म हुआ था। ये उनकी 129वीं जयंती है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हिंदी साहित्य के एक महान कवि, लेखक और आलोचक थे। इनको सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और जयशंकर प्रसाद के साथ हिंदी साहित्य के छायावाद का एक प्रमुख स्तंभ माना जाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी की 129वीं जयंती

सूर्यकांत त्रिपाठी का जन्म बंगाल की महिषदल रियासत, मेदिनीपुर में हुआ था। उनके पिता श्री रामसहाय तिवारी ऊना (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषदल में सिपाही की नौकरी करते थे। निराला जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। निराला जी की शिक्षा के दौरान ही उनकी रुचि साहित्य में जग गई थी।

कब लिखी थी निराला ने अपनी पहली कविता

निराला जी ने अपनी साहित्यिक यात्रा कविता से शुरू की। उन्होंने अपनी पहली कविता ‘जूही की कली’ 1916 में 20 साल की उम्र में लिखी थी जो 1922 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। उनकी पहली कविता संग्रह ‘अनामिका’ 1923 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद, उन्होंने ‘परिमल’, ‘अनुभव की यात्रा’ और ‘तुलसीदास’ जैसे कविता संग्रह प्रकाशित किए। निराला जी की कविताओं में प्रेम, सौंदर्य और सामाजिक चेतना की अभिव्यक्ति होती है।

कहानी और निबंध में निराला का योगदान

निराला जी ने कहानी और निबंध लेखन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कहानी संग्रह ‘लिली’ और ‘चतुरी चमार’ में सामाजिक और राजनीतिक चेतना की झलक मिलती है। निराला जी के निबंध संग्रह ‘साहित्य की बातें’ और ‘रस-रहस्य’ में साहित्यिक आलोचना और विश्लेषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं।

किसने दी सूर्यकांत त्रिपाठी को ‘निराला’ की उपाधि

सूर्यकांत त्रिपाठी को ‘निराला’ की उपाधि उनके साहित्यिक योगदान और विशिष्ट लेखन शैली के कारण मिली थी। ‘निराला’ शब्द का अर्थ है ‘अद्वितीय’ या ‘अनोखा’। यह उपाधि उन्हें उनके समकालीन साहित्यकारों द्वारा दी गई थी, जो उनकी रचनाओं की विशेषता और अद्वितीयता को पहचानते थे।

निराला को कब मिला था पद्मभूषण

निराला जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्हें 1954 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार भी मिले। निराला जी की विरासत हिंदी साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने हिंदी कविता और कहानी में नए आयाम जोड़े। उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों को आकर्षित करती हैं और हिंदी साहित्य की समृद्धि में उनका योगदान अविस्मरणीय है।

TAGGED:INDIAN POETNIRALASURYKANT TRIPATHI NIRALAWRITER
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