- सीपीसीबी की रिपोर्ट में खुलासा, पानी में ‘फेकल कोलीफॉर्म’ की मात्रा मानक से अधिक
प्रयागराज। महाकुंभ के दौरान संगम के पानी की गुणवत्ता को लेकर चिंताजनक रिपोर्ट सामने आई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की सोमवार (17 फरवरी 2025) को जारी रिपोर्ट में सामने आया है कि महाकुंभ के दौरान संगम का पानी नहाने लायक नहीं है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी इस रिपोर्ट में जल गुणवत्ता मानकों का उचित अनुपालन न होने की बात कही गई है।
सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार 12 से 15 जनवरी के बीच गंगा और यमुना की जल गुणवत्ता जांची गई, जिसमें फेकल कोलीफॉर्म का स्तर खतरनाक रूप से ज्यादा पाया गया। 13 जनवरी को गंगा के दीहा घाट पर यह स्तर 33,000 एमपीएन/100 एमएल दर्ज किया गया, जबकि 14 जनवरी को यमुना के पुराने नैनी ब्रिज पर भी इसी स्तर की पुष्टि हुई।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब कुंभ समाप्ति की ओर है और आखिरी विशेष स्नान शिवरात्रि पर होगा। इससे पहले मीडिया और सोशल मीडिया में लगातार ऐसी तस्वीरें और वीडियो जारी हो रहे थे जिनमें नाले सीधे गंगा नदी में गिरते हुए दिखाई दे रहे थे।
यह बात भी गौर करने वाली है कि महाकुंभ शुरू होने से पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिसंबर 2024 में गंगा की सफाई को लेकर एक चेतावनी भरी रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि प्रयागराज के रसूलाबाद में 50 नालों से सीवेज का गंदा पानी गंगा में छोड़ा जा रहा है। केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने 10 फरवरी 2025 को राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दावे के साथ कहा था कि प्रयागराज में नालों के माध्यम से प्रदूषित पानी को गंगा या यमुना नदी में नहीं छोड़ा जा रहा है।
क्यों चिंताजनक है सीपीसीबी की रिपोर्ट
एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट में सीपीसीबी ने बताया है कि महाकुंभ के दौरान संगम के पानी में फेकल कोलीफॉर्म की सीमा सामान्य से अधिक है। जिसका मतलब है कि संगम में विभिन्न स्थानों पर अपशिष्ट जल का स्तर स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता के अनुरूप नहीं है। फेकल कोलीफॉर्म यानी अपशिष्ट जल संदूषण का सूचक 2,500 यूनिट प्रति 100 एमएल से ज्यादा नहीं होना चाहिए। हालांकि संगम में प्रदूषण का स्तर कितना इसकी जानकारी सामने नहीं आई है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों में अपशिष्ट जल के बहाव को रोकने के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि सीपीसीबी ने तीन फरवरी को एक रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें कुछ गैर-अनुपालन या उल्लंघनों के बारे में बताया गया था। सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने समग्र कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने के दौरान एनजीटी के पूर्व के निर्देश का अनुपालन नहीं किया है।
एनजीटी ने कहा कि यूपीपीसीबी ने केवल कुछ जल परीक्षण रिपोर्टों के साथ एक पत्र दाखिल किया था। यूपीपीसीबी की केंद्रीय प्रयोगशाला के प्रभारी द्वारा भेजे गए 28 जनवरी के पत्र के साथ संलग्न दस्तावेजों की समीक्षा करने पर भी यह पता चला है कि विभिन्न स्थानों पर अपशिष्ट जल का उच्च स्तर पाया गया है।
प्रयागराज में कई गुना भीड़ और मानवजनित कचरे का निपटान
प्रयागराज NIC की वेबसाइट (https://prayagraj.nic.in/demography/) पर जानकारी मिली कि 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 59,54,390 है। मौजूदा समय में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। महाकुंभ मेला क्षेत्र करीब 4000 हेक्टेयर में फैला है।
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक महाकुंभ के 36वें दिन यानी कि 17 फरवरी तक 53 करोड़ से ज्यादा लोग संगम स्नान कर चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक औसतन हर रोज 1.5 करोड़ लोग स्नान कर रहे हैं, जैसा कि तमाम मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है।
जाहिर है प्रयागराज में इतनी बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं तो मानवजनित कचरा भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। महाकुंभ क्षेत्र को खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) बनाने के लिए उत्तर प्रदेश जल निगम (शहरी) ने डेढ़ लाख शौचालयों के निर्माण का दावा किया है। ऐसे में महाकुंभ मेला क्षेत्र को गंदगी मुक्त रखने के प्रदेश सरकार के दावों पर सीपीसीबी की रिपोर्ट खुद ही सवाल खड़े कर रही है। चिंता का विषय यह भी है कि गंगा नदी की पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
14 लाख टन कचरा कहां गया?
बीते दिनों ही एनजीटी में हुई एक सुनवाई में प्रयागराज नगर निगम से अदालत ने सवाल पूछा था कि महाकुंभ शुरू होते ही शहर का वर्षों पुराना 14 लाख टन कचरा कहां गया? रोजाना कचरे का प्रबंधन और निपटान कैसे किया जा रहा है?
वहीं हाल ही में भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी अमिताभ ठाकुर भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में एक याचिका दायर कर गंगा नदी के जल गुणवत्ता पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने याचिका में आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस संबंध में जानकारी अपलोड नहीं कर रहा है।