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लेंस संपादकीय

मणिपुर में केंद्र नाकाम

The Lens Desk
Last updated: March 6, 2025 3:33 pm
The Lens Desk
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दो साल से नस्लीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला साफ तौर पर भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार की संवैधानिक नाकामी के अलावा कुछ नहीं है। मणिपुर के हालात को यहां तक पहुंचाने में केंद्र सरकार और भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। बीरेन सिंह ने पांच दिन पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तब दिया, जब सुप्रीम कोर्ट ने फोरेंसिक लैब को उस क्लीपिंग की जांच करने के लिए कहा, जिसमें मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री कथित तौर पर राज्य की नस्लीय हिंसा की जिम्मेदारी लेते सुने गए हैं। बीरेन सिंह ने काफी पहले अपनी पार्टी के साथ ही सहयोगी दलों के विधायकों का भरोसा खो दिया था।कांग्रेस उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में थी, जिसमें उनकी हार लगभग तय दिख रही थी। वहां पार्टी और सहयोगियों में ऐसी बगावत है कि भाजपा तय समय में बीरेन का उत्तराधिकारी भी नहीं चुन सकी। अपने हाथ से सत्ता खिसकती देख किसी राज्य को संवैधानिक संकट में डालने का यह विरल उदाहरण है। यह बेहद त्रासद है कि मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी संघर्ष में मणिपुर जलता रहा और प्रधानमंत्री मोदी ने वहां आज तक जाना भी जरूरी नहीं समझा। और अब, जब कि वह अमेरिका प्रवास पर हैं, तो संवैधानिक बाध्यताओं के कारण मजबूरी में यह कदम उठाया गया है, जिसके अपने निहितार्थ हैं। 11 साल पहले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहला मौका है, जब उनकी अपनी ही पार्टी की सत्ता वाले राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा है।

TAGGED:ManipurPresident Rule
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