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लेंस संपादकीय

अंधेरे में

The Lens Desk
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Published: February 12, 2025 5:14 PM
Last updated: March 6, 2025 3:33 PM
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विपुल खनिज संपदा और वनों से समृद्ध बस्तर कई तरह के विरोधाभासों के साथ जीता है। इसका एक नजारा जिले के बकावंड ब्लॉक की गलियों और सड़कों पर देखा जा सकता है, जहां सालभर से अंधेरा पसरा हुआ है। असल में साल भर पहले राज्य शासन के क्रेड़ा विभाग ने बस्तर के गांवों को रौशन करने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाली लाइट लगाई थीं। पता चला कि क्रेड़ा ने जो पैनल और लाइट वगरैह लगाई थीं, वे घटिया थीं और कुछ दिनों में ही बेकार हो गईं। अमूमन गांव में स्ट्रीट लाइट का जिम्मा पंचायत का होता है, लेकिन क्रेड़ा के इस कदम के बाद पंचायत ने हाथ खींच लिए हैं। अपने अंधेरे से निकलने के लिए कश्मकश कर रहे बस्तर में सरकारी तंत्र की यह काहिली नई नहीं है। दरअसल यही समझने वाली बात है कि आज भी बस्तर सहित देश के कई हिस्से हैं, जहां आठ दशकों में भी आजादी की रोशनी ठीक से नहीं पहुंच सकी है। और ऐसी ही वजहों ने नक्सलियों के लिए जमीन तैयार की, जिनके खिलाफ सुरक्षा बलों की निर्णायक लड़ाई की वजह से बस्तर इन दिनों चर्चा में है। जाहिर है, नक्सली हिंसा से मुक्ति के साथ ही बस्तर के लोगों को उपेक्षा, शोषण और बदहाली के अंधेरे से भी बाहर निकालने की जरूरत है।

TAGGED:Abundant Mineral WealthBastar
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