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आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती, लोन हो सकते हैं सस्ते

The Lens Desk
Last updated: March 6, 2025 3:33 pm
The Lens Desk
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आरबीआई जिस ब्याज दर पर बैंकों को लोन देता है उसे कहते हैं रेपो रेट

मुंबई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने करीब 5 साल बाद ब्याज दरों को 6.5 फीसदी से घटाकर 6.25 फीसदी कर दिया है। यानी कि 0.25 फीसदी की कटौती की है। इससे अब सभी लोन सस्ते हो सकते हैं और ईएमआई भी घटेगी। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने सुबह 10 बजे मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) में लिए फैसलों की जानकारी दी। दो महीने पहले ही संजय मल्होत्रा को आरबीआई गवर्नर बनाया गया था। उन्होंने शक्तिकांत दास की जगह जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सप्ताह भर पहले आए आम बजट में भी सरकार ने मध्यम वर्ग के लिए बड़ा फैसला करते हुए आयकर में छूट की सीमा बढ़ाकर 12 लाख कर दी थी। अब रेपो रेट पर आरबीआई का फैसले से भी इसी वर्ग को सबसे ज्यादा फायदा होगा। इस फैसले से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार और आरबीआई अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए मध्यम वर्ग पर पूरा फोकस कर रही है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि रेपो रेट घटने का असर हाउसिंग और ऑटो मोबाइल जैसे लोन्स पर पड़ेगा। बैंक हाउसिंग और ऑटो जैसे लोन्स पर अपनी ब्याज दरें कम करेंगी। ब्याज दरें कम होने से रियल एस्टेट में निवेश बढ़ेगा। इसके साथ ही लोन कम होने से मार्केट में मनी फ्लो बढ़ेगा।

क्या होता है रेपो रेट?

आरबीआई जिस ब्याज दर पर बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहते हैं। रेपो रेट कम होने से बैंक को कम ब्याज पर लोन मिलेगा। बैंकों को लोन सस्ता मिलेगा तो बैंक इसका फायदा ग्राहकों को अपनी ब्याज दरें घटा कर देंगे। ये कटौती दो महीने में संभव है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि बीते कुछ समय में महंगाई दर में गिरावट देखी गई है। 2025-26 में महंगाई में और कमी आने का अनुमान है, इसलिए ब्याज दरों को घटाया गया है।

5 साल में रेपो रेट 4 फीसदी से बढ़कर 6.5 पर पहुंचा

किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो सेंट्रल बैंकों को रिजर्व बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है। इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है। बता दें कि पिछली बार रेपो रेट मई 2020 में घटाया गया था। आखिरी बार रेपो रेट में 0.40 की कटौती की थी। इसे 4 फीसदी कर दिया था। हालांकि, मई 2022 में रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू किया, जो कि मई 2023 में जाकर रुका। इस दौरान रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 2.50 फीसदी की बढ़ोतरी की और इसे 6.5 फीसदी तक पहुंचा दिया था। इस तरह से 5 साल बाद रेपो रेट घटाया गया है।

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