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The Lens > दुनिया > चिड़ियाघरों और जंगल सफारी की स्थापना पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अस्थाई रोक, केन्द्र और राज्यों को लेनी होगी कोर्ट से अनुमति
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चिड़ियाघरों और जंगल सफारी की स्थापना पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अस्थाई रोक, केन्द्र और राज्यों को लेनी होगी कोर्ट से अनुमति

The Lens Desk
Last updated: March 6, 2025 3:33 pm
The Lens Desk
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा – ऐसा कुछ मत करिए जिससे जंगल कम हो जाए

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को कोई भी ऐसा कदम उठाने से मना किया है जिससे वन भूमि में कमी आए। अपने फैसले में अदालत ने चिड़ियाघरों और जंगल सफारी के विस्तार पर भी रोक लगाई है। शीर्ष कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश के विनोद चंदन की डबल बेंच ने अस्थाई आदेश जारी करते हुए कहा कि संरक्षित क्षेत्रों के अलावा अन्य वन्य क्षेत्रों में सरकार या कोई भी प्राधिकरण वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में निर्दिष्ट चिड़ियाघरों और जंगल सफारी की स्थापना के किसी भी प्रस्ताव को इस कोर्ट की पूर्ण अनुमति के बिना अनुमोदित नहीं किया जाएगा। अपने अस्थायी आदेश में बेंच ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को टीएन गोदवर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ के मामले में 1996 के फैसले के शीर्ष कोर्ट द्वारा निर्धारित वन की परिभाषा के अनुसार कार्य करने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि अगर वन भूमि का उपयोग जरूरी हो तो इसके बदले में दूसरी जमीन पर पेड़ लगाने होंगे। यह फैसला पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।

कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों के जंगल के क्षेत्रफल में कमी लाने वाले हर काम पर रोक लगा दी है। यह फैसला वन (संरक्षण एवं संवर्धन) नियम, 2023 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। याचिका में केंद्र सरकार की ओर से वन (संरक्षण) अधिनियम में किए गए संशोधनों के कारण 1.97 लाख वर्ग किमी जमीन के वन क्षेत्र से बाहर होने का आरोप लगाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा कि अगर किसी जरूरी काम के लिए वन भूमि का इस्तेमाल करना ही पड़े, तो पेड़ लगाने के लिए दूसरी जमीन देनी होगी। पीठ ने साफ किया कि वो वन क्षेत्र में कमी लाने वाली किसी भी बात की इजाजत नहीं देंगे। पीठ ने कहा, हम आदेश देते हैं कि अगले आदेश तक, भारत सरकार और किसी भी राज्य द्वारा ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा जिससे वन भूमि में कमी आए।

यह मामला कुछ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सामने आया, जिनमें से एक याचिका सेवानिवृत्त भारतीय वन अधिकारियों के एक ग्रुप की ओर से दायर की गई थी। इन याचिकाओं में संशोधन को चुनौती देते हुए आरोप लगाया गया था कि इससे बड़े पैमाने पर वनों का कानूनी संरक्षण खत्म हो गया है और वे गैर-वन उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने के लिए असुरक्षित हो गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कानून में बदलाव से भारत की दशकों पुरानी वन शासन व्यवस्था कमजोर हो जाएगी और यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लंघन होगा क्योंकि इससे वन भूमि की परिभाषा कम हो जाएगी।

उनकी ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन और वकील कौशिक चौधरी ने कहा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए एक वैधानिक तंत्र बनाया है, लेकिन यह भारत के वन क्षेत्र के लिए बेहद नुकसानदेह होगा। उन्होंने कहा कि मंत्रालय की ओर से पारित चार नियामक दस्तावेजों से उभरने वाला यह तंत्र मुख्य रूप से गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि के आसान डायवर्जन को सुविधाजनक बनाने के इरादे से बनाया गया है, जिसमें देश की मूल्यवान वन भूमि को बाजार-आधारित तंत्रों के हवाले करने के प्रतिकूल प्रभावों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है।

केद्र ने तीन हफ्ते का मांगा समय

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सरकार याचिकाकर्ताओं की ओर से लगाए गए आरोपों का जवाब देगी और इसके लिए तीन हफ्ते का समय मांगा। उन्होंने अदालत को अगली सुनवाई की तारीख पर देश में घोषित वन क्षेत्र पर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का भी आश्वासन दिया।

जंगल के लिए देनी होगी जमीन

संशोधन को चुनौती देते हुए, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वन की नई परिभाषा ने भारत के सबसे कमजोर वन क्षेत्रों को असुरक्षित छोड़ दिया है और 2023 के संशोधन ने पहले से प्रदान की गई सुरक्षा को बड़े पैमाने पर वन भूमि से हटा दिया है और सुरक्षा को केवल भारतीय वन अधिनियम के तहत घोषित और अधिसूचित वन तक सीमित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सीमावर्ती इलाकों में सामरिक उद्देश्यों सहित किसी भी कारण से वन क्षेत्र का उपयोग अगर बहुत जरूरी हो, तो उसके बदले में उतनी ही जमीन जंगल लगाने के लिए देनी होगी ताकि वन क्षेत्र वही रहे।

वनों के संरक्षण के लिए अहम फैसला

यह फैसला भारत के वनों के संरक्षण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वन भूमि का इस्तेमाल गैर-वन उद्देश्यों के लिए न हो और देश के वन क्षेत्र में कमी न आए। यह आदेश पर्यावरण संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वन पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस फैसले से उन लोगों को भी राहत मिलेगी जो वनों पर निर्भर हैं। यह फैसला यह सुनिश्चित करेगा कि वनों का संरक्षण हो और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहें। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा और यह देश के पर्यावरण और वन संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

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