रायपुर। CGMSC के रीएजेंट घोटाले में फंसे मोक्षित कॉर्पोरेशन पर EOW, ED के बाद अब जीएसटी इंटलिजेंस (DGGI) का एक्शन शुरू हो गया है। जीएसटी आसूचना महानिदेशालय (DGGI) की तरफ से मोक्षित कॉर्पोरेशन और उससे जुड़ी करीब 85 फर्मों का बेजा टैक्स क्रेडिट यानी कि आईटीसी का नोटिस जारी किया गया है।
दूसरी तरफ इस मामले में गिरफ्तार किए गए मोक्षित कॉर्पोरेशन के शशांक चाेपड़ा की जमानत याचिका एक बार फिर खारिज हो चुकी है। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की है। जस्टिस दीपांकर दत्ता की कोर्ट ने यह फैसला किया है। इससे पहले जून में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने जमानत खारिज की थी, जिसके बाद आरोपी शशांक चोपड़ा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
मोक्षित कॉर्पोरेशन पर रीएजेंट घोटाले को अंजाम देने पर सबसे पहले राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) ने एफआईआर करते हुए कार्रवाई की थी। मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा को गिरफ्तार भी किया है। इसके बाद ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में एक्शन लिया। अब जीएसटी इंटेलिजेंस की रायपुर जोनल यूनिट ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 162.22 करोड़ रुपये के टैक्स वैल्यू पर 28.46 करोड़ रुपए के बेजा टैक्स क्रेडिट का नोटिस भेजा है।
ब्यूरो के एफआईआर में मोक्षित कॉर्पोरेशन के अलावा CGMSC और स्वास्थ्य संचालनालय के अधिकारियों पर आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था। ब्यूरो की जांच में पता चला था कि कॉर्पोरेशन ने अफसरों के साथ मिलीभगत कर टेंडर प्रक्रिया में हेराफेरी की। फर्जी डिमांड बनाकर मेडिकल इक्विपमेंट और रीएजेंट की सप्लाई मनमाने दामों पर की गई। इससे भारी वित्तीय नुकसान हुआ और आरोपियों ने बड़ा फायदा कमाया।
जब ब्यूरो ने जांच का दायरा बढ़ाया तो पता चला कि मोक्षित कॉर्पोरेशन ने फर्जी इनवॉइस के जरिए बड़े पैमाने पर GST में गड़बड़ी की। इसको लेकर ईडी और जीएसटी को भी सूचना दी।
जीएसटी इंटेलिजेंस ने जब जांच शुरू की तो पता चला कि मोक्षित कॉर्पोरेशन के शशांक चोपड़ा ने अपने रिश्तेदारों के नाम पर फर्जी फर्में बनाई थीं और उन्हीं के नाम से बिलिंग करा रहे थे।
जांच के दौरान DGGI ने छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में कई फर्मों पर तलाशी और निरीक्षण किया था और इस पूरे मामले की गड़बड़ियां उजागर की थी।
अफसरों और कारोबारियों की मिलीभगत
सीजीएमएससी घोटाले में अधिकारियों और कारोबारियों ने सरकार को 411 करोड़ का चूना लगाकर कर्जदार बना दिया। आईएएस और आईएफएस समेत अफसरों ने मिलीभगत कर सिर्फ 27 दिनों में 750 करोड़ रुपए की खरीदी कर ली। इस केस में मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। कॉर्पोरेशन के अधिकारी, मोक्षित कार्पोरेशन, रिकॉर्ड्स और मेडिकेयर सिस्टम, श्री शारदा इंडस्ट्रीज और सीबी कार्पोरेशन ने कम पैसों में मिलने वाले ईडीटीएम ट्यूब और 5 लाख वाली सीबीएस मशीन को तीन से 10 गुना मूल्य पर खरीदा।
दिसंबर 2024 में पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने दिल्ली में पीएमओ, केंद्रीय गृहमंत्री कार्यालय, सीबीआई और ईडी मुख्यालय जाकर इस घोटाले की शिकायत की थी।
कैसे मिलता था फर्म को टेंडर ?
द लेंस के पास घोटाले से जुड़े दस्तावेज हैं। इसके तहत अधिकारियों ने मोक्षित कार्पोरेशन को 27 दिन में 750 करोड़ का कारोबार दिया। मेडिकल किट समेत अन्य मशीनों की आवश्यकता भी नहीं थी। इसके बावजूद पूरी प्लानिंग के साथ इस घोटाले को अंजाम दिया। मोक्षित कार्पोरेशन और श्री शारदा इंडस्ट्रीज ने कार्टेल बनाकर कॉर्पोरेशन में दवा सप्लाई के लिए टेंडर कोड किया। सीजीएमएससी के तत्कालीन अधिकारियों ने भी कंपनी के मन मुताबिक टेंडर की शर्त रखी, ताकि दूसरी कंपनी प्रतिस्पर्धा में ना आ सके।