लेंस डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की एक नई परिभाषा को हरी झंडी दे दी है। अब सिर्फ उन्हीं हिस्से को कानूनी तौर पर ‘अरावली पहाड़ियां’ माना जाएगा, जो अपने आसपास के इलाके से कम से कम 100 मीटर ऊंचे हों।
कोर्ट ने सरकार को कहा है कि सही वैज्ञानिक नक्शे बनाएं, टिकाऊ खनन की योजना तैयार करे और तब तक कोई नया खनन का लाइसेंस जारी न किया जाए। लेकिन, इसी 100 मीटर वाले नियम से बड़ा डर पैदा हो गया है।
पर्यावरण से जुड़े लोग और विशेषज्ञ बता रहे हैं कि अरावली की करीब 90% पहाड़ियां इससे छोटी हैं। यानी जो इलाका अभी तक कानूनी सुरक्षा में था, उसका बड़ा हिस्सा अब सुरक्षा से बाहर हो सकता है और खनन के लिए खोल दिया जाएगा।
गौरतलब है कि 20 नवंबर को एक पीठ ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति द्वारा प्रस्तुत सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया था, जिसमें उत्तर-पश्चिम भारत में फैली 692 किलोमीटर लंबी पर्वत श्रृंखला की परिभाषा को मानकीकृत करने की मांग की गई थी।
डाउन टू अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पहले 1992 की एक सरकारी अधिसूचना और 2021 में NCR प्लानिंग बोर्ड ने पूरे अरावली क्षेत्र को खास सुरक्षा दी थी। अब नई परिभाषा आने से वो सारी पुरानी सुरक्षा लगभग खत्म हो जाएगी। छोटी-छोटी झाड़ियों वाली पहाड़ियां, घास के मैदान और निचली चोटियां सब खनन की जद में आ सकते हैं।
हरियाणा और राजस्थान में तो यह पहाडि़यां पहले ही बहुत बर्बाद हो चुकी हैं। भिवानी, चरखी दादरी जैसे इलाकों में लाइसेंस वाली खनन ने ही ज्यादातर पहाड़ियां गायब कर दीं। गुरुग्राम, नूंह और फरीदाबाद में 2009 से सुप्रीम कोर्ट ने खनन बंद किया था, लेकिन अब भी अवैध खनन रुक नहीं रहा। महेंद्रगढ़ में तो पानी 1500-2000 फीट नीचे चला गया है।
अरावली सिर्फ पत्थर का ढेर नहीं है। ये दिल्ली-एनसीआर के लिए फेफड़े का काम करती हैं। यहां के जंगल बारिश लाते हैं, गर्मी और प्रदूषण रोकते हैं, हवा को नमी देते हैं और सूखे को काबू में रखते हैं। ये पहाड़ियां बारिश का पानी जमीन के अंदर भेजती हैं। एक हेक्टेयर अरावली में 20 लाख लीटर पानी सोखने की ताकत है। लाखों लोगों का पीने का पानी इन्हीं पहाड़ियों के नीचे जमा है।
अगर इन छोटी पहाड़ियों को भी खोद दिया गया तो पानी का स्तर और नीचे चला जाएगा, प्रदूषण बढ़ेगा और दिल्ली से लेकर राजस्थान तक का मौसम और बिगड़ जाएगा।
सोनिया गांधी ने क्या कहा?

कांग्रेस पार्टी ने भी इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई है। पार्टी की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार पर अरावली पर्वत श्रृंखला की परिभाषा बदलने को लेकर तीखा हमला बोला और इसे सीधे-सीधे “अरावली के लिए मौत का परवाना” करार दिया। एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित लेख में उन्होंने कहा है कि
अरावली में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली कोई भी पहाड़ी खनन के विरुद्ध सख्त नियमों के अधीन नहीं है। यह अवैध खनन माफिया के लिए खुला निमंत्रण है। गुजरात से राजस्थान होते हुए हरियाणा तक फैली अरावली पर्वतमाला ने लंबे समय से भारतीय भूगोल और इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसे नष्ट करने की तैयारी मोदी सरकार ने की है।
पूर्व पर्यावरण मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि यह फैसला बेहद अजीब है और इसके पर्यावरण व जनस्वास्थ्य पर बेहद गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने तुरंत इसकी समीक्षा की मांग की है।
केंद्रीय समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया है, उसमें साफ लिखा है कि अरावली क्षेत्र का मौसम संतुलित रखने, रेगिस्तान के फैलाव को रोकने और भूजल को रिचार्ज करने में बहुत बड़ा योगदान है। समिति ने सभी राज्यों से सख्त नक्शा-निर्धारण नियम अपनाने, मजबूत सुरक्षा उपाय करने और अवैध खनन रोकने के लिए एआई व मशीन लर्निंग जैसे डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल करने की सलाह दी है।

