नई दिल्ली। सर्दी आते ही दिल्ली की हवा फिर से जानलेवा हो गई है। सुबह-शाम सांस लेना मुश्किल हो जाता है। लोग मास्क पहन रहे हैं, घरों में एयर प्यूरीफायर चला रहे हैं, सड़कों पर पानी का छिड़काव हो रहा है, लेकिन राहत नहीं मिल रही। सरकार ने तो 3.21 करोड़ रुपये खर्च कर कृत्रिम बारिश तक कराने की कोशिश की पर वह भी नाकाम रही।
अब एक नई रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली की इस हालत के लिए बाहर के राज्य नहीं, बल्कि दिल्ली के अपने कारण सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। पराली जलाने को सालों से दोष दिया जाता रहा, लेकिन इस बार उसका हिस्सा सिर्फ 5 प्रतिशत से भी कम रहा।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर-नवंबर 2025 में दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में रहा, जबकि पराली जलाने का योगदान न के बराबर था। असली जिम्मेदार दिल्ली के अपने स्रोत हैं।
दिल्ली के मुख्य प्रदूषक
- गाड़ियों का धुआं: 40 से 50 प्रतिशत तक पीएम 2.5 प्रदूषण के लिए जिम्मेदार। सुबह 7 से 10 बजे और शाम 6 से 9 बजे ट्रैफिक सबसे ज्यादा रहता है, तब प्रदूषण चरम पर पहुंच जाता है।
- निर्माण कार्यों की धूल
- कचरा जलाना
- आसपास की फैक्टरियों से निकलने वाला धुआं और कोयले का इस्तेमाल
सर्दियों में हवा की गति कम होने और ठंड के कारण ये प्रदूषक ऊपर नहीं उठ पाते, स्मॉग बन जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का पराली को अकेला दोषी मानने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि पराली जलाना प्रदूषण का सिर्फ एक छोटा कारण है, इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। कोर्ट ने याद दिलाया कि 2020 के कोविड लॉकडाउन में भी पराली जलाई गई थी, लेकिन तब गाड़ियां, निर्माण और फैक्टरियां बंद होने से दिल्ली का आसमान बिल्कुल साफ था। एक्यूआई उस समय 328 के आसपास था, जो सामान्य दिनों से बहुत कम था।
कोर्ट ने कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट को निर्देश दिया है कि वह गाड़ियों, धूल, निर्माण और कचरा जलाने जैसे स्थानीय कारणों पर सख्त कदम उठाए। अब इस मामले की हर महीने दो बार सुनवाई होगी ताकि साल भर निगरानी रहे। कोर्ट ने कहा – “किसानों को अकेला दोष देना गलत है, वे अपनी बात कोर्ट में रख भी नहीं पाते।”
सबसे ज्यादा पराली कौन जला रहा?
इस बार सबसे ज्यादा पराली मध्य प्रदेश में जलाई गई। वह लगातार दूसरे साल नंबर एक पर है। वहीं दिल्ली के पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में 50 से 80 प्रतिशत तक बड़ी कमी आई है। यह आंकड़े भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने जारी किए हैं।
किए जा रहे उपाय कितने कारगर?
सरकार ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) लागू कर रही है। एक्यूआई 300 पार होने पर जीआरएपी-2 और 400 पार होने पर जीआरएपी-4 लागू होता है। इसमें निर्माण रोकना, डीजल जनरेटर बंद करना, सीएनजी-इलेक्ट्रिक बसें बढ़ाना जैसे कदम शामिल हैं। पानी छिड़काव, एंटी-स्मॉग गन और कचरा जलाने पर जुर्माना भी लग रहा है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन कदमों के धरातल पर अमल पर सवाल उठाए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये उपाय सही हैं, लेकिन काफी नहीं हैं। जब तक पुरानी गाड़ियां सड़कों से हटेंगी, इलेक्ट्रिक गाड़ियां नहीं बढ़ेंगी, निर्माण और कचरे पर सख्ती नहीं होगी, तब तक दिल्ली की हवा साफ होना मुश्किल है।
इस साल भी दिल्ली का औसत एक्यूआई विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 20 गुना ज्यादा रहा। साफ है बाहर दोष देने से पहले दिल्ली को अपने घर को दुरुस्त करना होगा।

