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देश

TATA में ट्रस्‍ट का संकट, जानिए क्‍या है विवाद?

अरुण पांडेय
अरुण पांडेय
Published: October 10, 2025 6:24 PM
Last updated: October 10, 2025 6:24 PM
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Tata Trusts
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द लेंस डेस्‍क। टाटा ग्रुप भारत का सबसे बड़ा उद्योग समूह है जो कारों से लेकर होटलों तक सब कुछ बनाता है। लेकिन हाल ही में इसकी मूल संस्था टाटा ट्रस्ट्स में आपसी झगड़े ने सबको चौंका दिया है। कुछ ट्रस्टीज ने टाटा सन्स के बोर्ड से दो महत्वपूर्ण सदस्यों को हटाने की कोशिश की। टाटा ट्रस्ट्स के पास टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा सन्स है, जिसके पास ग्रुप की 66 फीसदी हिस्सेदारी है।

खबर में खास
रीढ़ की हड्डी है टाटा ट्रस्ट्सक्‍या करती है टाटा ट्रस्ट्स

ये विवाद सितंबर 2025 में तब सामने आया जब टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड की बैठक में कुछ ट्रस्टीज ने पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को टाटा सन्स के बोर्ड से नामित सदस्य के तौर पर हटाने का फैसला किया। विजय सिंह 77 साल के हैं और इन्हें नोएल टाटा के करीबी माना जाता है।

नोएल टाटा रतन टाटा के चचेरे भाई हैं और रतन टाटा की मौत के बाद ट्रस्ट्स के चेयरमैन बने हैं। उसी बैठक में टाटा मोटर्स के चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन को भी हटाने की कोशिश हुई जो नोएल के समर्थक हैं।

ट्रस्ट्स में दो गुट बन गए हैं। एक गुट नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन का है। दूसरा गुट मेहली मिस्री जैसे ट्रस्टीज का है जो विजय सिंह के खिलाफ थे। आरोप लगा कि नामित सदस्य बोर्ड की पूरी जानकारी ट्रस्ट्स तक नहीं पहुंचा रहे थे।

इसके अलावा टाटा इंटरनेशनल कंपनी को 1000 करोड़ रुपये की फंडिंग पर भी झगड़ा हुआ क्योंकि कंपनी घाटे में चल रही है। इस कलह से टाटा ग्रुप की स्थिरता पर सवाल उठने लगे।

यह विवाद इतना बढ़ गया कि उच्च सरकारी अधिकारियों को बीच में आना पड़ा। सूत्रों के मुताबिक सरकार ने कहा कि टाटा ग्रुप की स्थिरता जरूरी है क्योंकि ये भारत की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है। दोनों पक्षों को शांत रहने और बातचीत से हल निकालने की सलाह दी गई।

आखिरकार ट्रस्टीज ने अस्थायी तौर पर शांति बनाए रखने पर सहमति जताई। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि ये सिर्फ शुरुआत है और आगे और बैठकें होंगी। टाटा परिवार की एकता टूटने से ग्रुप के भविष्य पर असर पड़ सकता है।

रीढ़ की हड्डी है टाटा ट्रस्ट्स

टाटा ट्रस्ट्स टाटा ग्रुप की रीढ़ की हड्डी की तरह है। ये ट्रस्ट टाटा सन्स नामक कंपनी के करीब 66 प्रतिशत शेयर रखते हैं। टाटा सन्स ही पूरा टाटा ग्रुप चलाती है जिसमें टाटा मोटर्स टाटा स्टील जैसी सैकड़ों कंपनियां आती हैं।

ट्रस्ट्स को मिलने वाले लाभांश यानी डिविडेंड सीधे सामाजिक कामों पर खर्च होते हैं। साथ ही ट्रस्ट्स टाटा सन्स के बोर्ड में अपने नामित सदस्य भेजते हैं जो महत्वपूर्ण फैसले लेते हैं। बिना ट्रस्ट्स के टाटा ग्रुप का कोई बड़ा कदम आगे नहीं बढ़ सकता।

टाटा ट्रस्ट्स की शुरुआत 1892 में जामशेदजी टाटा ने की थी जब उन्होंने समाज सेवा के लिए एक फंड बनाया। जामशेदजी टाटा ग्रुप के संस्थापक थे और उनका मानना था कि कमाई का बड़ा हिस्सा गरीबों की भलाई पर लगाना चाहिए।

1919 में उनके बेटे सर रतन टाटा ने सर रतन टाटा ट्रस्ट बनाया। फिर 1932 में दूसरे बेटे सर दोराबजी टाटा ने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की स्थापना की। ये दोनों ट्रस्ट सबसे बड़े हैं। बाद में 1974 में नवाजबाई रतन टाटा ट्रस्ट भी बना। कुल मिलाकर ये ट्रस्ट टाटा परिवार की सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा हैं जो समाज को मजबूत बनाने पर जोर देते हैं।

क्‍या करती है टाटा ट्रस्ट्स

टाटा ट्रस्ट्स समाज के कमजोर वर्गों की मदद के लिए काम करती है। ये स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान देती है जैसे अस्पताल बनाना और दवाओं की पहुंच बढ़ाना। शिक्षा के क्षेत्र में स्कूलों और डिजिटल सीखने के कार्यक्रम चलाती है।

पानी की कमी से जूझते इलाकों में स्वच्छ पानी और शौचालय बनवाती है। ग्रामीण इलाकों में किसानों और मजदूरों को रोजगार के मौके देती है।

पर्यावरण की रक्षा के लिए जंगलों को बचाने और आपदाओं में मदद के काम करती है। इसके अलावा सामाजिक न्याय और गरीबी उन्मूलन जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय है। हर साल अरबों रुपये खर्च करके ये ट्रस्ट लाखों लोगों की जिंदगी बदल रही हैं।

यह भी देखें : भारत के म्यूचुअल फंड मार्केट में संभावना तलाश रही ये अमेरिकी कंपनी

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