लेंस डेस्क। चार साल के बाद भारत सरकार अफगानिस्तान में दूतावास फिर से खोलने जा रही है। तालिबान शासन के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी भारत की सात दिवसीय यात्रा पर हैं। शुक्रवार को उन्होंने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता की।
जिसके बाद जयशंकर ने घोषणा करते हुए कहा कि काबुल में मौजूद भारतीय टेक्निकल मिशन को अब पूर्ण दूतावास का दर्जा दिया जाएगा। बता दें कि 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था। इसके बाद, व्यापार, चिकित्सा और मानवीय सहायता के लिए भारत ने एक साल बाद वहां एक छोटा मिशन शुरू किया था, जिसे अब दूतावास का दर्जा मिल गया है।
तालिबान के विदेश मंत्री और उनके दल का भारत में स्वागत करते हुए जयशंकर ने इस यात्रा को दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने और आपसी दोस्ती को गहरा करने की दिशा में एक अहम कदम बताया।
उन्होंने कहा कि भारत, अफगानिस्तान का नजदीकी पड़ोसी और शुभचिंतक होने के नाते, उसके विकास और प्रगति में गहरी दिलचस्पी रखता है। भारत ने स्वास्थ्य, भूकंप जैसी आपदाओं में सहायता और खाद्य सामग्री प्रदान करके अफगान लोगों का हरसंभव समर्थन किया है।
उन्होंने अफगानिस्तान के विकास में भारत की रुचि को दोहराया और आतंकवाद के खिलाफ साझा प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने तालिबान विदेश मंत्री से कहा कि पहलगाम हमले के दौरान दिखाई गई एकजुटता के लिए भारत उनकी सराहना करता है।
इसके जवाब में तालिबान विदेश मंत्री ने भारत का आभार जताया और कहा कि भूकंप के दौरान भारत ने सबसे पहले अफगानिस्तान की मदद की थी। उन्होंने भारत को अफगानिस्तान का करीबी मित्र बताया।
2021 में बंद किया गया था दूतावास
भारत सरकार ने अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में स्थित अपने दूतावास के संचालन को अचानक रोक दिया था जब तालिबान ने वहां पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया। यह कदम तत्कालीन अफगान सरकार के पतन के ठीक बाद उठाया गया था।
क्योंकि सुरक्षा की स्थिति बेहद नाजुक हो चुकी थी और भारतीय राजनयिकों तथा नागरिकों की जान को खतरा मंडरा रहा था। तालिबान के लड़ाकों ने शहर के संवेदनशील इलाकों को घेर लिया था जिससे दूतावास तक पहुंच पूरी तरह अवरुद्ध हो गई और परिसर के अंदर फंसे लगभग दो सौ लोगों में घबराहट फैल गई।
भारत ने पहले ही अपने अधिकांश कर्मचारियों को बाहर निकाल लिया था लेकिन शेष सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दूतावास प्रबंधन को विवश होकर तालिबान से ही सहायता मांगनी पड़ी। 16 अगस्त की मध्यरात्रि में करीब डेढ़ सौ भारतीयों को लेकर एक काफिले को तालिबान के सशस्त्र समूहों ने हवाई अड्डे तक सुरक्षित पहुंचाया जहां से वे एक विशेष सैन्य विमान से गुजरात लौटे।
इस घटना के पीछे मुख्य वजहें तालिबान की भारत विरोधी नीतियां रहीं क्योंकि नई सरकार ने भारत के साथ पुरानी दुश्मनी को आधार बनाया जबकि भारत ने वर्षों तक अफगानिस्तान की पूर्व सरकार का खुला समर्थन किया था। इसके अलावा क्षेत्रीय शत्रु पाकिस्तान की भूमिका ने भी स्थिति को जटिल बनाया क्योंकि उसने तालिबान को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
इस घटना को हुए चार वर्ष बीत चुके हैं और हाल ही में भारत ने काबुल में अपनी राजनयिक उपस्थिति को पुनः सक्रिय करने की दिशा में कदम उठाए हैं लेकिन उस समय की अराजकता ने द्विपक्षीय संबंधों को लंबे समय के लिए प्रभावित किया।

